सेब पेड से टूट कर सन 1666 में कोई पहली बार जमीन पर नहीं गिरा था। सेब जबसे पैदा हो रहा है तभी से वह टूटने के बाद जमीन पर ही गिरता आ रहा है, कभी आसमान की ओर नहीं उछला।
सेब पेड से टूट कर सन 1666 में कोई पहली बार जमीन पर नहीं गिरा था। सेब जबसे पैदा हो रहा है तभी से वह टूटने के बाद जमीन पर ही गिरता आ रहा है, कभी आसमान की ओर नहीं उछला। लोग सिर्फ सेब ही नहीं, आम-अमरूद आदि सभी फलों को टूटकर जमीन पर ही गिरते देखते आ रहे हैं और इसे ही उनकी नियति मानते आ रहे हैं। सभी सिर्फ इतना ही जानकर संतुष्ट रहे हैं कि ऐसा ही होता है। ऐसा क्यों होता है, यह सवाल न्यूटन से पहले किसी के मन में नहीं उठा। हालांकि न्यूटन के मन में जब यह सवाल उठा तो इसे किसी वैज्ञानिक जिज्ञासा के रूप में नहीं देखा गया, फितूर कहा गया। यह अलग बात है कि इसी फितूर के भीतर से सर आइजक न्यूटन यानी एक महान वैज्ञानिक का जन्म हुआ और आज गुरुत्वाकर्षण का आधारभूत सिद्धांत दुनिया की थाती है।
अगर सबकी तरह वे भी पेड से गिरते सेब को देखकर लपके होते और खाने के बाद निश्चिंत होकर खेलने में जुट गए होते तो? क्या आज गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत हमारे पास होता? शायद नहीं, या हो सकता है कि किसी और को ऐसा ही काम करना पडा होता। आम तौर पर हम यही सोचते हैं मुर्गी पहले आई या अंडा ऐसे चक्कर में पडने से क्या फायदा! आपने गौर किया होगा, बच्चे आज भी ऐसे ही सवाल करते हैं। अकसर हम इसे उनका भोलापन मानकर हंसते हैं और अपनी सीमित समझ के अनुसार कोई टालू सा जवाब दे देते हैं। कई बार तो हद ही हो जाती है, जब वे ऐसे सवालों की झडी लगा देते हैं। अकसर हम उन्हें बेवकूफ मान कर डांट देते हैं। यह सोचे बगैर कि इसका नतीजा क्या होगा। अकसर यही छोटी-छोटी बातें बच्चों के लिए कुंठा का कारण बन जाती हैं।
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